घनश्याम दास बिड़ला
(बिड़ला साम्राज्य के संस्थापक)
सफलता का मंत्र - बड़ा सोचो, तेजी से सोचो व सबसे पहले सोचो विचारों पर किसी का एकाधिकार नहीं होता।
भारतीय उद्योग जगत की जानी-मानी संस्था बिड़ला साम्राज्य की सस्थापना घनश्यामदास बिड़ला ने किया था। उन्होंने अपने बिजनेस की शुरूआत शून्य से की थी। उनके दादा एक टेडिशन मारवाड़ी बिजनेसमेन थे। उनके दादा शिव नारायण बिड़ला का मुबंई (बंबई) में सूत का कारोबार था। उस वक्त उन्होंने अपनी लगन, कड़ी मेहनत, बुद्धि के बल पर 200 कंपनियों की स्थापना की। उनकी मृत्यु के समय बिड़ला ग्रुप की संपत्ति लगभग 2,500 करोड़ रूपये थी।
घनश्याम दास बिड़ला ने बिजनेस के अलावा शैक्षिक संस्थाओं की स्थापना पर भी ध्यान दिया। उन्होंने बिड़ला इंस्टीट्यूट आॅफ टैक्नोलाॅजी एंड साइंस की स्थापना की। यह देश की अग्रणी इंजीनियरिंग संस्थाओं में से एक है। उन्होंने अनेक मंदिर, अस्पताल व प्लेनेटोरियम भी बनवाएं।
घनश्याम दास बिड़ला का जन्म 10 अप्रैल सन् 1894 में पिलानी मंे हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा मात्र पाचवीं तक हो सकी। परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी न होने की वज़ह से इसके आगे पढ़ नहीं सके। उन्होंने अपने कैरियर की शुरूआत जूट ब्रोकर के रूप में की। उन्होंने अपना बिजनेस शून्य से आरम्भ किया था। आरम्भ में वे अपने भाई के साथ एक कमरे के छोटे से मकान में रहते थे। वहीं सड़क के किनारे स्नान व कपड़े धोने पड़ते थे।
घनश्याम दास बिड़ला ने प्रथम विश्व युद्ध के दौरान अपना काम आरम्भ किया। उन्होंने जब काम आरम्भ किया था, सौभाग्य से उनकी किस्मत ने काफी साथ दिया। उनका व्यवसाय खूब फला-फूला। उन्होंने जिस वक्त जूट का व्यवसाय शुरू किया उस वक्त इस व्यवसाय में अंग्रेजों का एकाधिकार था। जेडी बिड़ला इस क्षेत्र में अंग्रेजों के इस एकाधिकार को तोड़ना चाहते थे। इसके लिए वे जी-जान से जुट गए। इसके चलते उन्हें कई समस्यों का सामना करना पड़ा। यूरोपीय व्यापारियों ने उनके व्यवसाय को हर संभव नष्ट करने की कोशिश की।
यही नहीं अच्छी जमीन खरीदने की राह में भी अंग्रेजों ने रोड़े अटकाये, क्योंकि अंग्रेज नहीं चाहते थे कि जूट के व्यवसाय में कोई भारतीय उनका प्रतिद्वंद्वी बने। इससे बावजूद उन्होंने निडर होकर अंग्रेजों का सामना किया और अपने व्यापार को आगे बढ़ाने में लगे रहे।
घनश्याम दास बिड़ला भी विचारों के पक्के थे। वे जो भी काम हाथ में लेते उसे पूरा करके ही छोड़ते थे। उन्होने स्वयं का जूट मिल आरम्भ करने का निश्चय किया था। इस काम को परे जीजान से पूरा करने में जुट गए। उन्होंने केशवराय काॅटल मिल्स की नींव रखी व उसे कोलकाता ले गए। कोलकाता में उन्होंने बिड़ला जूट मिल्स आरम्भ किया। उन्होंने अपना काम आरम्भ करने के लिए विदेशों से जो मशीने बुलाई थी, रूपये का भाव कम हो जाने के कारण मशीनों की कीमत लगभग दुगूनी हो गई। घनश्याम दास बिड़ला ने अपना धर्य नहीं खोया। वे सभी मुसीबतों का सामना करते हुए अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहे।
यूरोपिय व्यापारियों ने उनके बिजनेस को हर संभव नष्ट करने की कोशिश की, लेकिन वे अपने स्थान पर जमे रहे। सन् 1919 में उन्होंने बिड़ला ब्रदर्स लिमिटेड की स्थापना की। जूट बिजनेस के अलावा उन्होंने चाय, वस्त्र सीमंेट, रसायन, रेयाॅन, स्टील ट्यूब व दूसरे कई कंपनियां स्थापित की। ग्वालियर में शूगर मिल, मिर्जापुर (उत्तर प्रदेश) में हिंडालको अल्मुनियम प्लांट आदि व्यापार द्वारा लोगों को रोजगार दिया और देश की तरक्की में उन्होंने सहयोग दिया।
कहते है कि घनश्याम दास बिड़ला इतना आगे की सोचते थे कि जब वे कोई नई मशीन विदेशों से बुलवाते थे, तो उसके स्पेयर पाटर््स भी साथ में ही बुलवा लेते थे, ताकि मशीन में कोई खराबी आने पर उसे तुरंत ठीक किया जा सकें और कोई काम न रूके।
घनश्याम बिड़ला ने मिल व व्यापार के अलावा देश में अनेक शिक्षण संस्थाओं की स्थापना की। उन्होंने अपने गांव पाटनी में सबसे पहला इंजीनियरिंग कालेज खोला। बिड़ला इंस्टीट्यूट आॅफ टैक्नोलाॅजी एण्ड साइंस देश के प्रमुख इंजीनियरिंग संस्थाओं में माना जाता है। जेडी बिड़ला फेडरेशन आॅफ इण्डियन चैम्बर आॅफ कामर्स के फाउंडर मेम्बर थे।
भगवान पर अपार आस्था रखने वाले घनश्यामदास बिड़ला ने देश में अनेक मंदिरों का निर्माण किया। जो श्राध्यालुओं के लिए आस्था का केन्द्र ही नहीं आधुनिक स्थापत्य कला के नमुने भी है। इनके अलावा अनेक आधुनिक चिकित्सा केन्द्र यानी अस्पताल का निर्माण करवाया। बिड़ला प्लेनेटोरियम जो लोगों अंतरिक्ष जिज्ञासा को पूरा करते हैं।
गांधी जी के नजदकी माने जाने वाले घनश्याम दास बिड़ला को सन् 1957 में पद्मविभूषण से सम्मानित किया गया। शोधरत वैज्ञानिकों को जीडी बिड़ला पुरस्कार दिया जाता है। इनके अलावा साहित्य व समाजसेवा में अच्छे योगदान के लिए भी जेडी बिड़ला पुरस्कार दिया जाता है। भारत के इस महान हस्ती का 11 जून 1983 को लंदन में उनका देहांत हो गया।
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