Monday, September 19, 2016

Rich daddy: Dhirubhai Ambani (founder of Reliance)

धीरूभाई अंबानी 

(रिलायन्स काॅमर्शियल के संस्थापक)

‘बड़ा सोचो, तेजी से सोचो व सबसे पहले सोचो विचारों पर किसी का एकाधिकार नहीं होता।’’ की सोच रखने वाले रिलायन्स कंपनी के संस्थापक धीरूभाई अंबानी की सफलता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने सन् 1959 में अपना बिजनेस मात्र 15,000 रूपये की पूंजी से आरम्भ किया था। सन् 2002 में जब उनकी मृत्यु हुई उस समय रिलायन्स ग्रुप की सकल संपत्ति 60,000 करोड़ के लगभग थी।
धीरजलाल हीराचंद अंबानी जिन्हें सभी धीरूभाई अंबानी के नाम से जानते है, का जन्म 28 दिसंबर सन् 1932 में गुजरात के जूनागढ़ जिले के चोरवाड़ गांव हुआ था। उनके पिता हीराचंद अंबानी माता जमना बेन के घर हुआ था। धीरूभाई अपने माता-पिता की पांचवी संतान थे। उनका बचपन काफी गरीबी में बीता। अपनी पढ़ाई और घर के खर्च के लिए सप्ताहांत गिरनार पर्वत पर ‘भजिया’ बेचने का काम करते थे। शिवरात्री पर अधिक भीड़ होने की वजह से उनके भजिऐ की अधिक बिकी्र होती थी।
उन्हें हर रोज कड़ी मेहनत करना पड़ता था। रोजाना कड़ी धूप में लगभग तीन किलोमीटर पैदल चल कर अपने रिश्तेदार के घर कुकासवाड़ा जाना पड़ा था। जहां से अपने परिवार के लिए छाछ ला सके। उन्हें अपनी मां की मदद करने के लिए उनके साथ पानी लाने के लिए पड़ोस के गांव में जाना पड़ता था।
बचपन में उनके पास एक ही जोड़ी कपड़े थे। वे इन एक जोड़ी कपड़ों का बड़ा ध्यान रखते थे। कपड़े को हर दिन धोने के बाद उसे रात को सोते समय अपने गद्दे के नीचे रख देते थे। जिससे कपड़े के सिलवट खत्म हो जाएं और यह प्रेस किए हुए दिखे। धीरूभाई अभाव से कभी डरे नहीं इसके बीच उससे निकलने का रास्ता हमेशा तलाशते रहे।
16 वर्ष की आयु में केवल दसवीं तक स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद नौकरी के लिए यमन चले गए। यह नौकरी उन्हें वहां ए. बैसी एंड कंपनी में डिस्पैच क्लर्क के रूप में मिली थी। यह कंपनी शंख-सीपियों का वितरण करती थी। थोड़े ही दिनों में उन्हें अदन की नई बंदरगाह पर शैल ईंधन स्टेशन का काम सौंपा गया। कुछ समय तक काम के लिए दुबई में भी रहे।
उनका मन काम में नहीं लगता था। बड़े-बड़े सपने देखना बचपन से उनका शौक था। अपनी बड़ी कंपनी बनाने के लिए हमेशा सोचा करते थे। अक्सर वे मन ही मन सोचते कि यहां जितने घंटे मैं काम करता हूं, यदि उतने ही घंटे मैं अपने लिए काम कंरूगा तो एक दिन में कितना कमा सकता हूं और एक महीने में इतना तो एक साल में उतना। एक दिन उन्होंने अपना काम शुरू करने का फैसला कर लिया। उन्होंने नौकरी छोड़ दी और भारत लौटने का फैसला कर लिया।
धीरूभाई अंबानी विदेश में नौ साल नौकरी करने के बाद भारत लौट आए। उनके पास इतना पैसा नहीं था कि कोई कंपनी शुरू कर सके। कुछ समय तक इस विचार में चला गया कि क्या किया जाए। सन् 1965 में उन्होंने चंपकलाल दमानी के साथ साझे में पन्द्रह हजार की पूंजी लगाकर मसाला का व्यापार आरंभ किया, लेकिन उन्हें जल्दी ही उन्हें एहसास हो गया कि यदि वे मसाला की बजाएं सूत का व्यापार करेंगे तो इसमें उन्हें फायदा ज्यादा होगा है। 
सन् 1966 में धीरूभाई अंबानी ने मसाला का व्यापार छोड़ दिया और सूत का व्यापार करने लगे। हालाकि उन्हें सूत व्यापरा का कोई अनुभव नहीं था। उनका कार्यालय मुबंई के सूत बाजार भुलेश्वर के नजदीक था। अक्सर सूत बाजार जाते वहां देखते-सुनते बाजार के भाव के उतार-चढ़ाव के बारे में पता करते। उन्होंने महसूस किया सूत का व्यापार आरंभी करने के लिए काफी निवेश की आवश्यकताहोगी। इसका लाभ भी उन्हें दिखाई दे रहा था। इतनी बड़ी रकम अपने दोस्तों और रिश्तेदारों से जमा करना मुश्किल था। वे समझ रहे थें तब उन्होंने व्याज देने वाले महाजन से व्याज पर रकम ली और सूत का कारोबार शुरू कर दिया। इससे उन्हें काफी फायदा होने लगा। उन्होंने मूल और व्याज के साथ महाजन को बोनस भी दिया। फिर क्या था उनके यहां रूपए देने वालों की लाइन लग गई। धीरूभाई ने कुछ ही दिनों में सूत बाजार में अपनी अच्छी पकड़ बना ली। 
उन्होंने नरोदा, गुजरात में वस्त्र निर्माण इकाई का आरंभ किया। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। वे दिन-रात मेहनत करते थे। अपनी मेहनत, लगन और बुद्धि से उन्होंने रिलायन्स को देश की सबसे बड़ी कंपनी बना दिया। भारतीय उद्योग में जगत में किसी भी समूह ने इतनी तेजी से तरक्की नहीं जितनी तेजी से धीरूभाई की कंपनी ने की है।
देखते ही देखते उन्होंने पेटोकेमिकल, टेली कम्यूनिकेशन, सूचना तकनीक, उर्जा रिटेल, टैक्सटाइल्स, इंफ्रास्ट्रक्चर, सेवाएं व पूंजी बाजार आदि पर अपनी धाक जमा ली। धीरूभाई अंबानी ने पाॅलिस्टर, पैट्रोकैमिकल, तेल शोधक कारखाने व तेल की खोज का अरबों डाॅलर का काॅर्पोरेशन तैयार किया।  
धीरूभाई के तेज दिमाग की हमेशा तारिफ की जाती है। एक बार उनके मिल के मशीन का कोई पार्ट खराब हो गया। उस वक्त देश में ऐसे पार्ट नहीं मिलते थे। उन्हें विदेश से मंगवाना पड़ता था। ऐसे में महिनों  का समय लग जाता था। इस बीच मिल का काम पूरा बंद रहता था। मजदूर सारे बिना काम के रह जाते थे।
मिल बंद होने से नुकसान भी काफी होता था। धीरूभाई ने महिनों का इंतजार नहीं किया। उन्होंने एक व्यक्ति को हवाई जहाज से पार्ट लाने के लिए भेंजा। दो दिन में मशीन को ठीक कर मिल को शुरू कर दिया। 
सन् 1977 में उन्होंने पूंजी बाजार में अपनी योजनाओं को वित्तीय रूप दिया। भारतीय शेयर बाजार में आम लोगों को निवेश करने का मौका दिया। उन्होंने अपने दम पर भारतीय शेयर बाजार का नक्शा ही बदल दिया। 80 के दशक में इनकी कंपनी स्टाॅक मार्केट में लोगों की सबसे चहेती कंपनी बन चुकी थी।
1992 में रिलांयस भारत की ऐसी पहली कंपनी बनी, जिसने वैश्विक बाजार में पैसा लगाया। मध्यमर्वीय लोगों को अपना निवेशक बनाया। इस प्रकार धीरूभाई अंबानी ने देश में एक नई निवेशक नीति आरंभ की। जिसमें आम जनता को उन्होंने अपने शेयर बेचे। रिलायंस ग्रूप ने देश में 500 कंपनियों का काॅर्पोरेशन तैयार किया। जो अपने आप में एक मिसाल है।
धीरूभाई को सन् 1996 और 1998 में एशियावीक द्वारा पाॅवर-50 द मोस्ट पाॅवरफूल पीपुल इन एशिया, सन् 1999 में हउर्टन स्कूल के डीन मैडल, सन् 2000 में द टाइम्स आॅफ इएिडया ने उन्हें ग्रेटेस्ट क्रिएटर आॅफ वेल्थ इन द सेंचुरी, मेन आॅफ द कंटी, 2001 में द इकोनाॅमी टाइम्स एर्वाड फाॅर कारपोरेट क्सीलेंश फाॅर लाइफटाइम एचीवमेंट, फिक्की द्वारा 20वीं सदी के भारतीय उद्यमी का दर्जा दिया गया। उनको बिजनेस आॅफ द इयर,, बिजनेस आॅफ डिकेट, बिजनेस आॅफ द सेंचुरी, बिजनेस बैरंस मैंगजीन, पैंसलवानिया यूनिवर्सिटी व मुबंई यूनिवर्सिटी द्वारा फस्र्ट सीटीजन सम्मान दिया गया।
6 जुलाई 2002 को उनका निधन हो गया। भारत सरकार ने उनकी स्मृति मंे एक डाक टिकट जारी किया है।

सफलता का मंत्र -
बड़ा सोचो, तेजी से सोचो व सबसे पहले सोचो विचारों पर किसी का एकाधिकार नहीं होता।

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