जे.
आर. डी. टाटा
(टाटा
के संस्थापक)
जे.आर.डी.
टाटा का जन्म 29 जुलाई सन् 1904 को पेरिस में हुआ था। उनके पिता टाटा उद्योग घराने
के प्रमुख थे। उनकी पढ़ाई-लिखाई फ्रांस, जापान एंव भारत में हुई। टाटा को बचपन से ही
विमान उड़ाने का शौक था। वे देश के पहले लाइसेंस शुदा पायलेट थे।
जे.आर.डी.
टाटा बीस वर्ष की उम्र भारत आ गए। उन्होंने यहां टाटा स्टील के तत्कालीन निर्देशक श्री
पैटरसन से उद्योग की बारीकियां सीखी। उन्होंने जमशेदपुर के इस्पात कारखानों के विभिन्न
विभागों में प्रशिक्षण लिया।
टाटा उद्योग
समूह के पितामह के रूप में पहचाने जाने वाले जे.आर.डी. टाटा ने एक बार कहा था, यदि
भारतीय रेल सेवा उन्हें सौंप दी जाए तो वे देश में सोने की पटरियों पर रेल दौड़ा देंगे।
इसमें दो राय नहीं भारतीय औद्योगिक विकास में जे.आर.डी. टाटा का बहुत बड़ा योगदान है।
सन् 1938 में अपने पिता की मृत्यु के बाद जे.आर.डी. को टाटा संस का अध्यक्ष घोषित किया गया उस वक्त टाटा समूह की चैदह
कंपनियां थी। 26 जुलाई 1988 तक टाटा समूह के
पास 95 कंपनियां हो चुकी थी।
कहा जाता
है। जिन्होंने अपनी सन् 1932 में जे.आर.डी. टाटा ने देश की पहली हवाई परिवाहन कंपनी
‘टाटा एयरलाइंस’ की स्थापना की। इस एयरलाइंस ने बाम्बे से कराची की पहली यात्रा की।
आगे चलकर टाटा एयरलाइंस का नाम बदल कर ‘एयर इंडिया लिमिटेड’ कर दिया गया। वर्तमान समय
में यह ‘एयर इंडिया इंटरनेशनल’ के नाम जाना जाता है। जे.आर.डी. टाटा लम्बे समय तक एयर
इंडिया इंटरनेशनल के कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में कार्य करते रहे।
टाटा के आग्रह
पर भारत सरकार ने राष्ट्रीय उड़ान के लिए ‘इंडियन एयरलाइंस’ एवं अंतर्राष्ट्रीय उड़ान
के लिए ‘एयर इंडिया’ नामक विमान सेवा की शुरूआत की। वे अपने देश को प्रगतिशील राष्ट्रों
की सूची में देखना चाहते थे। इसलिए आय कम होने पर भी उन्होंने यह कार्य बंद नहीं किया।
विमानों मंे परिचारिकाएं रखने की योजना भी जे.आर.डी. टाटा की ही देन है। जे.आर.डी.
टाटा को उड्डयन के क्षेत्र में अनेक पुरस्कार से सम्मानित किया गया। भारतीय वायु सेना
द्वारा सन् 1948 में अवैतनिक सामुदायिक सेनापति भी घोषित किया गया। सन् 1966 में उन्हें
भारतीय वायु सेना का आॅनरी एयर कमांडर बना दिया गया। उन्हें अनेक अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार
भी मिले। जिनमें सन् 1979 को टोनी जैनस अवार्ड, सन् 1985 में अंतर्राष्ट्रीय विमान
संघ द्वारा स्वर्ण युग पदक, सन् 1986 में अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संस्थान की
ओर से एडवर्ड वार्नर अवार्ड, सन् 1988 में डैनियल गगैनहिम एवार्ड से सम्मानित किया
गया।
जे.आर.डी.
टाटा ने टाटा संस के अध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया। उन्होंने कभी भी अपने कर्मचारियों
को अपने से छोटा नहीं समझा। वे उनकी जरूरतों का पूरा ध्यान रखते थे। कर्मचारियांे की
समस्या को वह तुंरत दूर करते थे। जे.आर.डी. टाटा को भारत का सर्वाधिक साहसिक व प्रसिध्द
नागरिक माना जाता है। उन्होंने अपने कार्यकाल में मशीनों से ज्यादा मजदूरों व कर्मचारियों
पर ध्यान दिया। जिसके चलते वे हर किसी के बीच काफी लोकप्रिय थे।
जे.आर.डी.
टाटा ने देश की उन्नति के लिए अनेक तरह के उद्योग धन्धों की स्थापना की। उन्होंने इस्पात
कारखानें, विमान सेवाएं, साबुन, तेल, सीमंेट, नमक, कपड़ा मिल, पाॅवर, इंजीनियरिंग, कंसेलटेंसी
सवर्सिज, सूचना तकनीक औद्यिगिक उत्पादन, स्थायी उपभोक्ता, सूचना तकनीक, उपभोक्ता माल
आदि की स्थापना की। इतना ही नहीं उन्होंने बीमा कंपनी की भी स्थापना की। जे.आर.डी.
टाटा टाटा उद्योग समूह, इंडियन होटल्स कंपनी, टाटा आयल्स मिल्स, टाटा केमिकल्स के अध्यक्ष
व निदेशक थे। इसके साथ लंदन के टाटा लिमिटेड, न्यूयाॅर्क के टाटा बिजनेस, टाटा यूनीसाइस
लिमिटेड, टाटा इंजीनियरिंग एवं लोकोमोटिव कंपनी लिमिटेड तथा टाटा आयरन एण्ड स्टील कंपनी
के भी निदेशक थे।
सन् 1944
मेें आई टाटा-बिड़ला योजना में भी जे.आर.डी. टाटा ने प्रमुख भूमिका निभाई। जवाहरलाल
नेहरू भी प्राय उनसे कई मामलों में परामर्श लेते थे। उन्हीं के परामर्श से प्रधानमंत्री
राष्ट्रीय कोष की स्थापना की गई। जे.आर.डी. टाटा ने टाटा इंस्टीट्यूट आॅफ फाउंडेशन,
टाटा इंस्टीट्यूट आॅफ फांडामेंटल रिसर्च, स्थापना की। वे इसके प्रशासकीय समिति एवं
सरकारी समिति के अध्यक्ष भी रहे। जे.आर.डी. टाटा, सर डोराबजी टाटा, जमशेदजी टाटा ट्रस्ट
के सभापित थे। उन्हें अनेक राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों व उपाधियों से सम्मानित
किया गया।
पद्म विभूषण,
फें्रच के सैन्य सम्मान, आॅर्डर आॅफ मेरिट आॅफ फेडरल रिपब्लिकन आॅफ जर्मनी नाइट कमांडर
क्रास, लंदन के धातु बेस्सेमेर, दादाभाई नौरोजी स्मृति पुरस्कार, इलाहाबाद, रूड़की,
बनारस, मुबंई विश्वविद्यालय द्वारा डाक्टरेड की उपाधि से सम्मानित किया गया। उन्हें
भारत सरकार ने उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया। वे मानवता के सच्चे सेवक थे। परिवार
नियोजन व जनसंख्या नियंत्रण में कार्य करने के लिए उन्हें सन् 1992 में यू. एन. पापुलेशन
अवार्ड, सन् 1992 में उन्हें भारत रत्न के सर्वोच्च अलंकरण से सम्मानित किया गया।
9 नवंबर सन्
1993 में स्विटज़लैण्ड गए और वहां से कभी लौट कर भारत वापस नहीं आए। वहीं उनकी मृत्यु
हो गई।
No comments:
Post a Comment