Saturday, January 7, 2017

अज़ीम हाशम प्रेमजी (विप्रो टेक्नोलाॅजीस के चेयरमैन)



अज़ीम हाशम प्रेमजी

(विप्रो टेक्नोलाॅजीस के चेयरमैन)

अज़ीम प्रेमजी विप्रो टेक्नोलाॅजीस के चेयरमैन है। फोब्र्स मैग्जीन के अनुसार उनकी संपत्ति लगभग दस बिलियन डाॅलर से भी अधिक हैं। वे दुनिया के सबसे अमीर व्यक्तियों में शामिल है।
अज़ीम प्रेमजी का जन्म 24 जुलाई 1945 को मुबंई के गुजराती मुसलिम परिवार में हुआ था। प्रारम्भिक शिक्षा के बाद वे उच्च शिक्षा के लिए विदेश चले गए। यू.एस.ए. के स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय से इलैक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे थे। इसी बीच उनके पिता की अचानक मृत्यु हो गई। पिता की मृत्यु के पश्चात उन्होंने काॅलेज की पढ़ाई अधूरी छोड़ कर भारत लौट आना पड़ा। 
अज़ीम प्रेमजी भारत लौट आएं। यहां उनके पिता एमएच प्रेमजी का वेस्टर्न इंडिया वेजीटेबल प्रोडक्ट कंपनी था। यह कंपनी आगे चल कर विप्रो कंपनी बन गई। सन् 1966 में अज़ीम प्रेमजी ने 21 वर्ष की उम्र में अपने पिता के बिजनेस से अपने कैरियर की शुआत की। उन्होंने जब कंपनी का काम संभाला उस समय उनके पास कोई अनुभव नहीं था। अज़ीम प्रेमजी कहते हैं, ‘मै इसके लिए बिलकुल तैयार नहीं था। मेरे पास सिर्फ एक सपना था। एक बड़ी कंपनी बनाने का सपना।
पिता की मृत्यु के बाद उन्हें 7 करोड़ रूपए की कंपनी विरासत में मिली। जिसमें वनस्पिति तेल और कपड़ा धोने का साबुन बनाया जाता था। उन्हें कंपनी चलाने का कोई अनुभव नहीं था। इसके बावजूद उन्होंने बड़ी खूबी से कंपनी को चलाया। एक लक्ष्य रख कर काम को शुरू किया। उन्हें सफलता मिलती गई। 
अज़ीम प्रेमजी मूल्यों पर आधारित एक संगठन की स्थापना करना चाहते थे, जिसके फलस्वरूप विप्रो का जन्म हुआ। उन्होंने एक लक्ष्य बनाया जिसके अनुसार वे विप्रो को पांच वर्ष में देश की शीर्षस्थ दस कंपनियों में शामिल करना चाहते थे। यह उनकी कड़ी मेहनत, लगन व बुद्धि का परिणाम हैं कि उन्होंने इस लक्ष्य को एक वर्ष के अन्दर ही पा लिया। उनका मानना है किसी भी काम को पूरा करने के लिए लक्ष्य जरूरी है। लक्ष्य को लेकर चलने पर उस काम को होने से कोई रोक नहीं सकता। आज विप्रो कंपनी की सालाना आय 5 अरब डाॅलर है। वह साफटवेयर निर्यात करने वाली देश की तीसरी सबसे बड़ी कंपनी है। आज विप्रो कारोबार की दुनिया में ऐसी एथलीट है जिसमें लंबी रेस तय करने के लिए जरूरी धैर्य के साथ फर्राटा भरने के लिए असीम उर्जा भी है।
विप्रो देश का सबसे प्रतिष्ठित ब्रांड में से है। आज विप्रो टेक्नोलाॅजी के अलावा विप्रो इन्फोटेक, विप्रो कंज्यूमर केयर एण्ड लाइटिंग, विप्रो इन्फ्रास्टक्चर इजीनियरिंग तथा विप्रो जीई मेडिकल सिस्टम लि. के          माध्याम से विप्रो ने देश-विदेश में अपना कारोबार सफलता पूर्वक फैला रखा है।
प्रेमजी अपने काम से प्यार करते हैं। वे हर दिन 13 घंटे काम करते हैं। उनका कहना है अपने सपने पूरा करना है तो मेहनत करना जरूरी है। इंसान के पास सपना है मेहनत करने तथा सीखने की इच्छा है तो वह दौलत और शोहरत दोनों पा सकता है। काम के अलावा उनकी पढ़ने में काफी रूचि है। पढ़ने के लिए वे नियमित समय निकालते है। उनका कहना है सूचना के इस युग में मस्तिष्क की शक्ति ही सबसे महत्तवपूर्ण सम्पत्ति है। आज दुनिया में ज्ञान इतनी तेजी से बढ़ रहा है कि अगर आप लगातार ज्ञान अर्जित नहीं करते हैं, तो आप पीछे रह जाएंगे और दुनिया आगे निकल जाएगी।
पैसा कमाना अधिकांश लोगों का ध्येय होता है। जबकि अजीम प्रेमजी ऐसे शख्शियत है जिन्होंने अपना ध्येय हमेशा सेवा रखा। सादगी पसंद सहज और सरल स्वभाव वाले अजीम प्रेमजी इतने मिलनसार है कि वे अपने छोटे कर्मचारियों और आम लोगों से भी मिलने में हिचक महसूस नहीं करते। वे आडंबर और दिखावे से भी दूर रहते है। तभी तो उनके पास मंहगी गाड़ियां नहीं है। हवाई जहाज में वे सफर इकोनाॅमी क्लास में ही करते हैं। आलीशान गेस्ट हाउस में रूकने की बजाय साधारण गेस्ट हाउस में रूकना पसंद करते हैं। साठ बसंत से ज्यादा पार कर चुके अजीम प्रेमजी  आमतौर पर कम बोलते हैं।
अज़ीम प्रेमजी ने बिजनेस के अलावा सामाजिक उत्तरदायित्वों को भी पूरा किया। उन्होंने  सन् 2001 में अजीम प्रेमजी फाउंडेशन की स्थापना की। इस संस्था के माध्यम से गरीब तबकों के बच्चों के प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में काम करती है। काम की उत्कृष्टता के बारे में प्रेमजी का कहना है कि हमें केवल दिमाग से ही नहीं बल्कि दिल और आत्मा से भी सोचना चाहिए। उन्होंने विप्रो एप्लायिंग थाॅट इन स्कूल व विप्रो केयर्स जैसे विभिन्न कार्यक्रमों को किया है।
अज़ीम प्रेमजी को कई सम्मान व पुरस्कार मिले है। सन् 2005 में फराडे मैडल पाने वाले वे पहले भारतीय व्यक्ति हैं। रूड़की के आई.आई.टी. व मनीपाल एकेडमी ने उन्हें मानद की उपाधियों प्रदान की है। एक्स.एल.आर.आई से औद्योगिक व सामाजिक शांति के लिए सर जहाॅगीर    गांधी मैडल प्रदान किया गया। सन् 2005 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मभूषण की उपाधि से अलंकृत किया।

सफलता का मंत्र -
एक लक्ष्य बनाओं। कड़ी मेहनत,लगन से आगे बढ़ो। कामयाबी मिल कर रहेगी।

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