करसन भाई खोडीदास पटेल
(निरमा के संस्थापक)
करसन भाई निरमा के संस्थापक है, जिन्होंने अकेले अपने दम पर हिंदुस्तान लीवर लिमिटेड जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनी को परास्त कर दिया। इस बहुराष्ट्रीय कंपनी को इतनी बड़ी टक्कर दुनिया के किसी भी देश में नहीं मिली। उन्होंने देश भर में पुरानी परंपरा को खत्म कर नई परंपरा को कायम किया। लोग साबुन की टिकिया से कपड़े धोते थे। उन्हें साबुन की बजाय डिटर्जेन्ट पाउडर के इस्तेमाल के लिए प्रभावित किया। लोगों ने धीरे-धीरे इसे फैशन के रूप में अपना लिया। हिंदुस्तान लीवर के एक शीर्ष एक्जीक्यूटिव ने करसन भाई के बारे में कहा था, ’‘उन्होंने पूरे देश की कपड़े धोने की आदतों को साबुन से डिटर्जेंट में बदल दिया।’’
करसन भाई का जन्म 1944 में गुजरात के अहमदाबाद जिले के मेहसाना गांव में बेहद साधारण किसान परिवार में हुआ था। कैमिस्ट्री में बीएससी आॅनर्स करने के बाद नौकरी करने लगे। उन्होंने अपने कैरियर की शुरूआत राज्य के भू-गर्भ एवं खनन विभाग मंे लैब असिस्टेंट की नौकरी से की। करसन भाई ने छह साल तक सरकारी दफ्तर में प्रयोगशाला तकनीशियन का काम किया। तब उनकी तनख्वाह सिर्फ 170/- रूपए थी। इतने कम पैसों में घर चलाना मुश्किल होता था। इसकी वज़ह से उनका मन सरकारी नौकरी में नहीं लगता था। वे कुछ नया करना चाहते थे। आमदनी बढ़ाने के लिए अपना कुछ काम करने का मन बनाया।
कैमिस्ट्री का नाॅलेज था, इसलिए घरेलू डिटर्जेन्ट पाउडर बना कर बेचने का ख्याल आया। वे दिन में सरकारी नौकरी करते थे और रात मंे घर पर डिटर्जेन्ट पाउडर बनाने का प्रयोग करते थे। आखिर में उन्हें अच्छे किस्म का डिटर्जेन्ट पाउडर बनाने में सफलता मिल ही गई। डिटर्जेन्ट पाउडर का व्यावसाय शुरू करने के लिए 500/- रूपए की आवश्यकता थी। इतने रूपए उनके पास नहीं थे। दोस्तों से सिर्फ 150/- रूपए उधार मिल पाया। उन्होंने पत्नी के गहने बेचकर 300/- रूपए जुटाए और इन्हीं रूपयों से उन्होंने सन् 1969 में डिटर्जेन्ट पाउडर के निर्माण का काम शुरू कर दिया।
उन्होंने किराए के एक छोटे से कमरे में रात के दो बजे पाउडर तैयार करने के लिए भट्टी सुलगाई और उस पर कढ़ाई चढ़ा दी। सवेरे छह बजे तक डिटर्जेन्ट पाउडर तैयार हो चुका था। करसन भाई आॅफिस से आने के बाद देर रात तक डिटर्जेन्ट पाउडर बनाते थे और रविवार के दिन साइकिल पर निरमा डिटर्जेन्ट पाउडर के पैकेट लेकर गली-गली घूमते थे। महंगी टिकिया के बजाय सस्ता वाशिंग पाउडर खरीदने की इच्छुक महिलाएं उनके निरमा डिटर्जेन्ट पाउडर को पसंद करने लगी। करसन भाई ने कीमत कम रखने के लिए गुणवत्ता से कोई समझौता नहीं किया था।
क्वालिटी की दृष्टि से यह फाॅस्टेट फ्री सिंथेटिक डिटर्जेन्ट लाजवाब था। यह जल्दी ही लोकप्रिय हो गया। तीन रूपये किलो का डिटर्जेन्ट पाउडर हाथांे-हाथ बिकने लगा। करसन भाई निरमा का पैकेट देते समय ग्राहकों से कहते थे, ’‘पसंद न आये, तो पैसे वापस।’’ उनकी यह नीति लोगों को बहुत पसंद आई। उन दिनों बाजार में हिन्दुस्तान लीवर का ‘सर्फ’ डिटर्जेन्ट पाउडर का मार्केट में बड़ा दबदबा था। जहां ‘सर्फ’ का रंग नीला था वहीं इनके डिटर्जेन्ट पाउडर का रंग पीला था।
उन्होंने यह कलर जानबूझ कर नहीं किया था बल्कि पैसों की कमी से ऐसा हुआ था। पैसे कम हो जाने की वज़ह से एक मित्र से रंग उधार मांगना पड़ा था। उस वक्त नीले रंग की बजाय उन्हें पीला रंग ही मिल पाया था। बाद में यह रंग अलग पहचान बन गया। पाउडर के नाम को लेकर काफी सोच विचार करना पड़ा। आखिरकार उन्हें व परिवार वालों को छह माह की बेटी निरूपमा का नाम उचित लगा। इसे छोटा करके ‘निरमा’ कर दिया।
शुरूआती सफलता मिलने के बाद करसन भाई ने सरकारी नौकरी छोड़ दी। उन्होंने सन् 1977 में अहमदाबाद के पास छोटे से स्तर से डिटर्जेन्ट पाउडर बनाने का काम आरम्भ किया। उन्होंने अपनी बेटी निरूपमा के नाम पर अपने डिटर्जेन्ट पाउडर का नाम निरमा रखा। देसी तकनीक से बना यह पाउडर गुणवत्तापूर्ण तो था ही साथ ही साथ इसकी कीमत भी अन्य डिटर्जेन्ट पाउडर से कम थी।
जब निरमा वाशिंग पाउडर बाजार में आया तब डिटर्जेन्ट का देसी बाजार सीमित था। बाजार पर बहुराष्ट्रीय कंपनियों का कब्जा था। इसलिए करसन भाई ने घर-घर जाकर निरमा बेचने का तरीका अपनाया। करसन भाई ने दाम और क्वालिटी से पूरे डिटर्जेट मार्केट में तहलका मचा दिया। देसी डिटर्जेन्ट पाउडर का नया बाजार तैयार हो गया। बड़े-बड़े ब्रांड फीके पड़ गए और बाजार में निरमा सबसे बड़ा उत्पादक बन गया।
करसन भाई को एक के बाद एक सफलता मिलती गई। जब कम दाम वाले डिटर्जेन्ट पाउडर का बाजार में कब्जा हो गया तो निरमा ने प्रीमियम यानी मंहगें सेगमेंट में प्रवेश किया। इस क्षेत्र में भी करसन भाई को सफलता मिली।
प्रीमियम डिटर्जेट में 30 प्रतिशत और प्रीमियम साबुन में 20 प्रतिशत हिस्सेदारी हो गई। करसन भाई को कई सम्मान व पुरस्कार मिले। फेडरेशन आॅफ एसोसिएशन आॅफ स्माॅल स्केल इंडस्ट्रीज आॅफ इंडिया, नई दिल्ली ने उन्हें उद्योग रत्न से सम्मानित किया। गुजरात चैंबर्स आॅफ काॅमर्स ने उन्हें 80 के दशक के अद्भुत उद्योगपति के सम्मान से नवाजा।
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